Hill States and their relations with the Sikhs
पहाड़ी राज्य और उनके सिखों के साथ संबंध
Q.1. उन्नीसवीं शताब्दी में सिखों और पहाड़ी रियासतों के सम्बन्धों का वर्णन कीजिए।
(1) जस्सा सिंह रामगढ़िया
बंदा बहादुर की मृत्यु के पश्चात सिख 12 मिशलों में संगठित हुए। मिशलों के सरदारों में जस्सा सिंह रामगढ़िया पहला सिख सरदार था जिसने 1770 ई. में पहाड़ी रियासतों काँगड़ा, नूरपुर और चम्बा के राजाओं को अपना कर दाता बनाया तथा दत्तारपुर, जसवा और हरिपुर रियासतों को अपने राज्य में मिलाया। कन्हैया मिशल के सरदार जयसिंह कन्हैया ने 1775 ई. में जस्सा सिंह रामगढ़िया को पराजित कर काँगड़ा के राज्यों पर अधिकार कर लिया।
(ii) जयसिंह कन्हैया और संसारचंद-
1781-82 में कन्हैया मिशल के सरदार जय सिंह कन्हैया की सहायता पाकर संसारचंद ने नगरकोट के किले को घेर लिया। किले के अंतिम किलेदार नवाब सैफ अलीखान ने कहलूर की रानी से मदद माँगी। लेकिन 1783 ई. में नवाब सैफ अलीखान की मृत्यु के पश्चात उसके सैनिकों ने आत्मसमर्पण कर किला खाली कर दिया। संसारचंद किला जीतकर भी उसका स्वामी नहीं बन सका।
चार वर्ष तक काँगड़ा किला जयसिंह कन्हैया के पास रहा। संसारचंद ने सुकरचकिया मिशल के महासिंह और रामगढ़िया मिशल के जस्सा सिंह के साथ मिलकर बटाला में जयसिंह कन्हैया को हराया। जयसिंह कन्हैया ने 1786 ई. में काँगड़ा किला (नगरकोट) संसारचंद को सौंप दिया।
(iii) रणजीत सिंह और संसारचंद-
संसारचंद के कहलूर (बिलासपुर) पर आक्रमण के पश्चात् कहलूर के राजा महानचंद ने गोरखा कमाण्डर अमरसिंह थापा को 1804 ई. में सहायता के लिए बुलाया। अमर सिंह थापा ने 1806 ई. को महलमोरियों में संसारचंद को हराया। संसारचंद ने भागकर काँगड़ा किले में शरण ली। संसारचंद ने रणजीत सिंह से सहायता मांगी।
संसारचंद और महाराजा रणजीत सिंह के बीच ज्वालामुखी मंदिर में 1809 में ज्वालामुखी की संधि हुई जिसके अनुसार गोरखों को हराने के बदले संसारचंद महाराजा रणजीत सिंह को काँगड़ा किला और 66 गाँव देगा। महाराजा रणजीत सिंह ने अमरसिंह थापा को हरा दिया।
संसारचंद ने काँगड़ा किला और 66 गाँव रणजीत सिंह को सौंप दिए। महाराजा रणजीत सिंह ने देसा सिंह मजीठिया को काँगड़ा किले का पहला सिख किलेदार व पहाड़ी रियासतों का गवर्नर बनाया। रणजीत सिंह ने ज्वालामुखी मंदिर में धार्मिक अनुष्ठान किया व सोने का छत्र भी चढ़ाया। संसारचंद की 1823 ई. में मृत्यु हो गई।
(iv) रणजीत सिंह और अनिरुद्ध सिंह-
संसारचंद की मृत्यु के बाद 1823 ई. में एक लाख नजराना रणजीत सिंह को देकर अनिरुद्ध चंद (संसारचंद का पुत्र) गद्दी पर बैठा। 1827 ई. में रणजीत सिंह ने अपने दीवान ध्यानसिंह के पुत्र के लिए अनिरुद्ध चंद की बहन का हाथ मांगा जिसे अनिरुद्ध चंद ने अनमने ढंग से मान लिया, परंतु बाद में टालमटोल करने लगा।
महाराजा रणजीत सिंह ने जब नादौन के लिए स्वयं प्रस्थान किया तो अनिरुद्ध चंद और उसकी माँ ने अँग्रेजी राज्य में पुत्रियों के साथ शरण ली। कुछ दिन हरिद्वार में रहने के दौरान अनिरुद्ध चंद ने अपनी दोनों बहनों का विवाह टिहरी गढ़वाल के राजा सुदर्शन शाह के साथ कर दिया और स्वयं बाघल रियासत की राजधानी अर्को में रहने लगा।
(2) रणजीत सिंह और अन्य पहाड़ी राज्य-
1813 ई. में रणजीत सिंह ने हरिपुर (गुलेर) का राज्य छीन लिया। उसके राजा भूपसिंह को लाहौर में बन्दी बना लिया गया। 1815 ई. में जसवाँ रियासत पर कब्जा किया गया क्योंकि जसवों के राजा उम्मेद सिंह ने भारी जुर्माना देने के बजाए 12000 रुपये में जागीर स्वीकार कर ली।
नूरपुर राज्य पर भी सियालकोट (1815) में अनुपस्थित रहने के लिए जुर्माना लगाया गया (जसवां की तरह)। राजा वीर सिंह ने जुर्माना अदा करने की कोशिश की। वीर सिंह जुर्माना अदा न कर सका।
उसे जागीर लेने का प्रस्ताव दिया गया जिसे लेने से उसने मना कर दिया और सिक्खों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया तथा पहाड़ी रास्ते से अँग्रेजी इलाके में चला गया। नूरपुर पर रणजीत सिंह का कब्जा हो गया। वीर सिंह को 1826 ई में गिरफ्तार कर अमृतसर भेज दिया गया। जहाँ से 7 वर्ष बाद चम्बा के राजा ने जुर्माना भर कर उसे छुड़वाया। सिखों ने 1825 ई. में कुटलेहड़ पर कब्जा कर लिया।
1818 ई. में दत्तारपुर के राजा की मृत्यु पर सिखों ने दत्तारपुर पर कब्जा कर लिया और बदले में उसके उत्तराधिकारियों को होशियारपुर में जागीर दी गई। सिब्बा राज्य पर 1809 ई. में रणजीत सिंह का कब्जा हो गया था। ध्यानसिंह के कहने पर रणजीत सिंह ने 1830 ई. में गोविंद चंद को राज्य लौटा दिया. क्योंकि उसने ध्यान सिंह के पुत्रों से सिब्बा परिवार की राजकुमारियों का विवाह करवाया था। मण्डी रियासत 50 हजार रुपये से 1 लाख रुपये सलाना कर रणजीत सिंह को देती थी।
कुल्लू रियासत भी 50 हजार रुपये वार्षिक कर रणजीत सिंह को देती थी। चम्बा रियासत भी चढ़त सिंह के शासन में रणजीत सिंह के प्रभुत्व में आ गई परंतु चम्बा के राजा की स्वतंत्रता कायम रही। सिरमौर रियासत के नारायणगढ़ पर भी सिखों ने कब्जा कर लिया था। 1839 ई. में रणजीत सिंह की मृत्यु हो गई।
(vi) जनरल वैचुरा (1840 ई.-1841 ई.)-
सिख सेना के जनरल वैचुरा के नेतृत्व में 1840 ई. में सेना कुल्लू और मण्डी की ओर बढ़ी। कुल्लू के राजा ने आत्मसमर्पण कर दिया। मण्डी के राजा बलवीर सेन जो एक रखैल का पुत्र था, उसे कैद कर अमृतसर भेज दिया गया। राजा बलवीर सेन को गोविंदगढ़ किले में रखा गया। बलवीर सेन को 1841 ई. में छोड़ दिया गया। बलवीर सेन ने अपने 12 किलों को सिक्खों से मुक्त करवा लिया किन्तु कमलाहगढ़ किला 1846 ई. के बाद ही कब्जे में आ सका।
बिलासपुर, नालागढ़, सिरमौर, शिमला की रियासतें ब्रिटिश संरक्षण की वजह से सिखों की बची रही। (vii) प्रथम आंग्ल-सिख युद्ध (1845-46 ई.) महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद 1845-46 ई. में सिक्खों और अँग्रेजों के मध्य एक भयंकर युद्ध हुआ। लार्ड हार्डिंग प्रथम इस समय भारत के गवर्नर जनरल थे।