श्रीगुप्त को गुप्त साम्राज्य का संस्थापक माना जाता है। चन्द्रगुप्त प्रथम (319-20 ई.) का पुत्र समुद्रगुप्त महान् विजेता था। समुद्रगुप्त ( भारत का नेपोलियन) इस वंश का सबसे प्रतापी राजा था। हरिषेण के इलाहाबाद प्रशस्ति से पता चलता है कि पहाड़ों के सभी राजाओं ने उसकी अधीनता स्वीकार कर ली थी और समुद्रगुप्त को अपना स्वामी मानकर जागीरदारों की तरह उसे कर देते थे। उनकी सारी भूमि गुप्त वंश की मानी जाती थी।
चौथी शताब्दी से छठी शताब्दी के बीच हिमाचल प्रदेश के कुछ पुराने गणतन्त्र नष्ट हो गए और नवीन गणराज्यों का जन्म हुआ। चौथी शताब्दी के पश्चात् औदुम्बर गणराज्यों के विषय में कुछ भी पता नहीं चलता। इससे पहले की शताब्दी में ही इस गणतन्त्र का स्वतन्त्र अस्तित्व समाप्त हो गया था और इसके सिक्के ढलने बन्द हो गए थे।
अनुमान लगाया जा सकता है कि प्रथम शताब्दी में शाकाल अथवा स्यालकोट में मिनेण्डर अथवा संस्कृत के मिलिन्द का उद्भव हुआ, जो औदुम्बरों का निकटतम पड़ोसी था और जिसने औदुम्बर गणराज्य को दुर्बल बनाया।
सम्भवत: औदुम्बर या तो अन्य राज्यों में मिल गए या उनका महत्त्व इतना कम हो गया कि तीसरी-चौथी शताब्दी में उनका स्वतन्त्र सिक्का नहीं रहा। समुद्रगुप्त का इलाहाबाद का शिलालेख भी इस बात की पुष्टि करता है। यह भी संभव है कि इस कबीले के दुर्बल होने पर पश्चिम में मद्रकों और पूर्व में त्रिगर्तौ ने इनके राज्य पर कब्जा कर लिया होगा।