मौर्योत्तर काल : शुंग वंश और हिमाचल का प्राचीन इतिहास

Shunga dynasty

मौर्योत्तर काल शुंग वंश

मौर्यों के पतन के बाद शुंग वंश पहाड़ी गणराज्यों को अपने अधीन रखने में अधिक सफल नहीं रहे। शुंग के शासन के समय इस पर्वतीय प्रदेश में ब्राह्मण धर्म और खासकर शैव धर्म का अत्यधिक विकास हुआ।

 मौर्योत्तर काल : शुंग वंश और हिमाचल का प्राचीन इतिहास
Shunga dynasty

पुष्यमित्र शुंग की मृत्यु के पश्चात् भारत के अनेक राज्य स्वतन्त्र हो गए और कई राज्यों पर विदेशी यवनों का शासन हो गया। इसके साथ ही हिमाचल की राजनीतिक व्यवस्था अस्थिर हो गई। ऐसा प्रतीत होता है कि यवन हिमालय के इस दुर्गम पर्वतीय प्रदेश में नहीं घुस सके, मगर डेमोटियस और मिनेण्डर के पंजाब विजय के बाद तो यहाँ पर शुंगों का शासन समाप्त हो गया।

सम्भवतः मैदानों से लगने वाले इस पर्वतीय प्रदेश के कुछ राज्यों के शासकों ने भी यवनों की अधीनता स्वीकार कर ली। इसके प्रमाण के रूप में अपोलोडोटस के रजत के सिक्के ज्वालामुखी से प्राप्त हुए हैं, जो यवनों के इस क्षेत्र में हिन्द-यूनानी राज्य के विस्तार के द्योतक हैं। एण्टीयोकस द्वितीय, फिलोजेनस, लीसियस, एण्टीआकाइड्स और मिनाण्डर के भी कुछ रजत सिक्के काँगड़ा से मिले हैं।

ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी में शकों का आक्रमण शुरू हुआ। शकों का यहाँ पर बहुत प्रभाव रहा। गद्दी और गुर्जर आज भी अपने को शकों का वंशज मानते हैं। शक सूर्य के उपासक थे। इन्होंने सूर्य के अनेक मन्दिर भी बनाए। नीरथ (हिमाचल प्रदेश) में निर्मित सूर्य नारायण का मन्दिर आज भी विद्यमान है।

 

कुषाण वंश

शकों के बाद कुषाणों ने प्रथम सदी ई. में आक्रमण किया, जिसका पहाड़ी राज्य सामना न कर सके और सभी ने हथियार डाल दिए। इसका प्रमुख कारण देशी राज्यों का आपसी संघर्ष था। कुषाणों के सबसे प्रमुख राजा कनिष्क के शासनकाल में पहाड़ी राज्यों ने समर्पण कर दिया और कनिष्क की अधीनता स्वीकार कर ली।

 

कनिष्क और हुविष्क नामक इस वंश के दो ही शक्तिशाली शासक हुए हैं। कनिष्क ने कश्मीर से लेकर कुमाऊँ तक का पूरा पर्वतीय क्षेत्र अपने अधीन करके सम्राट की उपाधि धारण की।

कुषाणों के सिक्के हिमाचल प्रदेश के अनेक स्थानों से मिले हैं। कालका- कसौली सड़क पर कनिष्क के 40 ताम्र निर्मित सिक्के एक स्थान से मिले हैं। कनिष्क का एक सिक्का काँगड़ा के कनिहारा नामक स्थान से भी मिला है। इससे पता चलता है कि यह क्षेत्र कुषाण सम्राट के साम्राज्य का अंग था। चम्बा से कुषाणकालीन कला के उदाहरण मिलते हैं। किन्नौर, लाहौल-स्पीति, कुल्लू से कुषाणों की अधीनता का प्रमाण नहीं मिला है।

यद्यपि कुषाणों ने अधिक समय तक शासन नहीं किया, परन्तु उन्होंने इस पहाड़ी क्षेत्र के राजाओं की शक्ति को काफी कमजोर कर दिया था, जिसके परिणामस्वरूप ये राज्य बहुत समय तक स्वतन्त्र न रह सके और चौथी शताब्दी में समुद्रगुप्त ने इन्हें जीतकर अपने अधीन कर लिया। कश्मीर से लेकर नेपाल तक का विस्तृत क्षेत्र, जो कभी कुषाण साम्राज्य हुआ करता था, बदलकर विशाल गुप्त राज्य बन गया था।

हिमाचल से जुड़ी जानकारी के लिए Twitter पर  हमें Join करें Click Here
हिमाचल से जुड़ी जानकारी के लिए Like करें हमारा Facebook Page Click Here
हिमाचल प्रदेश की खबरें पढ़ने के लिए हमारे व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ें Click Here
 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *


error: Content is protected !!