हिमाचल के इतिहास की अनदेखी गाथा: मौर्य काल से वर्तमान तक का सफर
History of Himachal and Maurya period
सिकंदर का आक्रमण-
सिकंदर ने 326 BC के समय भारत पर आक्रमण किया और व्यास नदी तक पहुँच गया। सिकंदर के सैनिकों ने व्यास नदी के आगे जाने से इंकार कर दिया था। इसमें सबसे प्रमुख उसका सेनापति ‘कोइनोस’ था। सिकंदर ने व्यास नदी के तट पर अपने भारत अभियान की निशानी के तौर पर बारह स्तूपों का निर्माण करवाया था जो अब नष्ट हो चुके हैं।
चन्द्रगुप्त मौर्य-
चन्द्रगुप्त मौर्य ने पहाड़ी राजा पर्वतक और अपने प्रधानमंत्री चाणक्य के साथ मिलकर मौर्य साम्राज्य की स्थापना की ओर कदम बढ़ाए। विशाखादत्त के मुद्राराक्षस और जैन ग्रंथ परिशिष्टपवरण में पर्वतक और चाणक्य के बीच संधि का वर्णन मिलता है। ‘मुद्राराक्षस’ के अनुसार चन्द्रगुप्त ने किरात और खशों को अपनी सेना में भर्ती किया। पर्वतक निश्चय ही त्रिगर्त नरेश रहा होगा। पर्वतीय राजाओं में केवल कुलूत के राजा चित्रवर्मा और कश्मीर के राजा पुष्कराक्ष मे चन्द्रगुप्त का विरोध किया था।
चाणक्य की सहायता से 323 ई.पू. में चन्द्रगुप्त नंदवंश का नाश कर सिंहासन पर बैठा और मौर्य साम्राज्य की स्थापना की। कुलिंद राज्य को मौर्यकाल में शिरमौर्य कहा गया क्योंकि कुलिंद राज्य मौर्य साम्राज्य के शीर्ष पर स्थित था। कालांतर में यह शिरमौर्य सिरमौर बन गया।
अशोक –
चन्द्रगुप्त मौर्य के पोते अशोक ने मझिम्म और 4 बौद्ध भिक्षुओं को हिमालय में बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए भेजा। ह्वेनसांग के अनुसार अशोक ने कुल्लू और काँगड़ा में बौद्ध स्तूपों का निर्माण करवाया था। कुल्लू के कलथ और काँगड़ा के चैंतडू में अशोक निर्मित स्तूप स्थित है। कालसी (उत्तराखण्ड) में अशोककालीन शिलालेख पाए गए हैं।
हिमालय क्षेत्र में बौद्ध धर्म के प्रचार में मझिम्म का साथ 4 बौद्ध भिक्षुओं-कस्सपगोता, धुन्धीभिसारा, सहदेव और मुलकदेव ने दिया। हि.प्र. में 242 B.C. में ही बौद्ध धर्म का प्रवेश हो गया था। 210 B.C. के आसपास मौर्य साम्राज्य का पतन आरंभ हुआ जो 185 BC में शुंग वंश की स्थापना से पूर्ण हो गया।
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