पहाड़ी राज्य और सिखों के साथ उनके संबंध) Hill states and their relations with Sikhs
(i) गुरुनानक देव जी- पहले सिख गुरु ने ज्वालामुखी, काँगड़ा, कुल्लू, लाहौल, चम्बा, कहलूर, सिरमौर, मण्डी और सुकेत की यात्रा की। उनकी यात्रा की याद में सबाथू के निकट जोहसर में गुरुद्वारा बना है।
(ii) गुरु अर्जुन देव जी- पाँचवें सिख गुरु ने अमृतसर में हरमंदिर साहिब के निर्माण के लिए पहाड़ी राज्यों से धन प्राप्त किया। कुल्लू, सुकेत, मण्डी, चम्बा और हरिपुर के राजा गुरुजी के शिष्य बने। गुरुजी ने भाई कल्याण को मण्डी के राजा के पास भेजा जिसके बाद राजा अपनी रानी के साथ अमृतसर पहुँचकर गुरुजी का शिष्य बना।
(iii) गुरु हरगोविन्द जी- छठे सिख गुरु ने कहलूर के राजा के भेंट किए हुए भू-भाग पर 1634 ई. में कीरतपुर शहर बसाया और गद्दी स्थापित की। पहाड़ी राजाओं ने 1642 ई. में गुरुजी के सहयोग से रोपण के नवाब को हराया था।
(iv) गुरु तेगबहादुर जी- नवें सिख गुरु ने कहलूर की रानी से प्राप्त 3 गाँव पर मखोवाल गाँव बसाया जो बाद में आनंदपुर साहिब के नाम से जाना जाने लगा। यह उनका निवास स्थान बना।
(v) दसवें गुरु गोविंद सिंह जी और पहाड़ी राज्य– गुरु गोविंद सिंह का जन्म पटना साहिब में हुआ। उनके पिता गुरुतेग बहादुर सिंह जी को औरंगजेब ने दिल्ली के चाँदनी चौक पर शहीद कर दिया। उनका लालन-पालन आनंदपुर साहिब में हुआ।
• सिरमौर प्रवास- सिरमौर के राजा मेदनी प्रकाश के बुलावे पर गुरुजी नाहान आए। राजा ने उन्हें यमुना नदी के किनारे पाँवटा साहिब में किला बनाने के लिए भूमि प्रदान की। गुरुजी 1683-1688 तक पाँवटा में रहे और दशम ग्रंथ की रचना की। उनका विशाल गुरुद्वारा पाँवटा साहिब में स्थित है। गुरुजी ने सिरमौर के राजा मेदनी प्रकाश और गढ़वाल के राजा फतेहचंद के बीच मैत्री करवाई।
• भगानी युद्ध (1686 ई.) –
गुरुजी और कहलूर के राजा भीमचंद के बीच सफेद हाथी को लेकर मनमुटाव हुआ जिसे गुरुजी को आसाम के राजा रत्नराय ने दिया था। गुरु गोविंद सिंह और कहलूर के राजा भीमचंद, उसके समधी गढ़वाल के फतेहशाह और हण्डूर के राजा हरिचंद के बीच 1686 ई. में ‘भगानी साहिब’ का युद्ध हुआ, जिसमें गुरु गोविंद सिंह विजयी हुए। हण्डूर का राजा हरिचंद गुरुजी के तीर से इस युद्ध में मारा गया। युद्ध के बाद गुरुजी ने हरिचंद के उत्तराधिकारी को भूमि लौटा दी और कहलूर के राजा भीमचंद से भी उनके संबंध मधुर हो गए।
• नदौन युद्ध– नदौन युद्ध में गुरुजी ने भीमचंद की सहायता की और मुगल सेनापति को पराजित किया। नदौन पराजय के बाद दिलावर खान के बेटे रुस्तम खान ने आनंदपुर पर आक्रमण किया जिसे गुरुजी ने नाकाम कर दिया। गुरुजी ने गुलेर के राजा गोपाल सिंह के साथ मिलकर लाहौर के सूबेदार गुलाम हुसैन खान को पराजित किया।
• मण्डी यात्रा– गुरुजी ने मण्डी के राजा सिद्धसेन के बुलावे पर मण्डी और कुल्लू की यात्रा की।