Describe the role of freedom movement in Himachal Pradesh

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1. रामपुर बुशहर का दूम आन्दोलन

(1859) : वर्ष 1859 में रामपुर बुशहर में किसानों के द्वारा विद्रोह की शुरुआत की गई। इस समय सारी रियासत में असन्तोष व्याप्त था क्योंकि इस रामपुर बुशहर के दूम आन्दोलन का मुख्य कारण ‘नकदी भूमि लगान’ था। यहां किसान अपनी उपज का पांचवां भाग राज्य को देते थे। किसान नकद भूमि लगान देने में असमर्थ थे। इन्हीं कठिनाइयों के अनुरूप अनेक अहिंसात्मक आन्दोलनों की शुरुआत हुई। इन आन्दोलनों का मुख्य केन्द्र रोहड् क्षेत्र था।

 

यहां पर दूम के नियमों के अनुसार ही परिवारों व पशुओं को लेकर हर किसान को जंगल की तरफ जाना था। यहां सारे गांव खाली हो गये। खेती आदि भी बन्द कर दी गई तथा लोगों ने सामूहिक विरोध करना शुरू कर दिया।

 

फलस्वरूप प्रशासन का पूरा ध्यान इन व्यक्तियों व किसानों की तरफ गया। इस आन्दोलन से बुशहर में भी अशान्ति फैल गई। भूमि के लगान के रूप में राज्य की आय थी, वह भी बन्द हो गई व रियासत में विद्रोह होने के कारण ही ब्रिटिश सरकार का हस्तक्षेप भी बढ़ गया। ‘शिमला हिल स्टेट्स’ के सुपरिन्टेन्डेन्ट जी.सी. बर्न्स ने बुशहर रियासत के राजा शमशेर सिंह से विचार-विमर्श करने के पश्चात् आन्दोलनकारियों की तीन मांगों को मान लिया।

यह तीन मांगें निम्नलिखित थीं-

(i) उस समय लगान की व्यवस्था को समाप्त करना।
(ii) लगान की वसूली परम्परागत तरीकों से करना।
(iii) खानदानी वजीरों को पुराने रीति-रिवाजों के अनुसार ही सत्ता का अधिकार सौंपना।

2) मण्डी में जन आन्दोलन :

वर्ष 1869 में मण्डी के लोगों ने असहयोग आन्दोलन किया। मण्डी की प्रजा वजीर गोसाअं व पुरोहित शिव शंकर के अत्याचारों से बहुत दुखी थी। अतः यहां अंग्रेज सरकार ने अपना हस्तक्षेप किया तथा वजीर गोसाउं को दण्ड स्वरूप रु. 2000 का जुर्माना भरना पड़ा। शिव शंकर तथा उसके पुत्र को रियासत से बाहर किया गया तब जाकर यह आन्दोलन शांत हुआ।

Author: Ram Bhardwaj