introduction
प्लेटो का जन्म 428 ई. पू. एथेन्स के कुलीन परिवार में हुआ था। उसकी माता का नाम परिक्टियनी व पिता का नाम अरिस्टोन था। प्लेटो का वास्तविक नाम अरिस्टोक्लीज था, किन्तु उसके चौड़े कन्धों के कारण उसे प्लेटो नाम दिया गया।
लगभग 20 वर्ष की आयु में प्लेटो ने सुकरात का शिष्यत्व ग्रहण किया, परन्तु 399 ई. पू. उसके गुरु सुकरात की मृत्यु से उसके जीवन में नया मोड़ आया। इस पर मैक्सी ने कहा कि इस समय प्लेटो में सुकरात पुनः जीवित हो उठा। इसके पश्चात् प्लेटो इधर-उधर घूमता रहा। कहते हैं कि इस समय वह भारत में गंगा नदी के तट पर भी आया तथा सिसली के सिराक्यूज राज्य में डियोनसिस से उसकी भेंट भी हुई।
388 ई. पू. प्लेटो ने एथेन्स लौटकर अपनी आयु के चालीसवें वर्ष में अकादमी नामक शिक्षण संस्था की स्थापना की। इसे यूरोप का प्रथम विश्वविद्यालय होने का गौरव प्राप्त हुआ। प्लेटो ने सिसली के राजा दियोनसिस द्वितीय को दार्शनिक शासक बनाने का भी प्रयास किया, परन्तु वह विफल रहा। प्लेटो को दार्शनिकों का राजा और राजाओं का दार्शनिक बनाने वाला कहा जाता था। 81 वर्ष की आयु में 347 ई. पू. में अपने पीछे अरस्तू आदि सैकड़ों शिष्यों को छोड़कर यह अमर दार्शनिक मृत्यु की गोद में सो गया।
प्लेटो के प्रमाणिक ग्रन्थों की संख्या 28 है, वैसे प्लेटो के ग्रन्थों की संख्या 36 या 38 के आस-पास मानी जाती है। उसके सभी प्रामाणिक ग्रन्थों का (बर्नेट द्वारा सम्पादित एवं ऑक्सफोर्ड द्वारा प्रकाशित) यूनानी संस्करण 2662 पृष्ठों में प्रकाशित हुआ है।
प्लेटो के प्रमुख ग्रन्य
- क्रीटो
- यूथीफो
- अपोलॉजी
- सिम्पोजियम
- रिपब्लिक
- स्टेट्समैनमीनो
- जोर्जियस
- प्रोटागोरस
- फेडो
- सोफिस्ट
- लॉज
यूनानी राजदर्शन अथवा राजनीतिक चिन्तन का क्षेत्र प्रधानतः राज्य की प्रकृति एवं व्यक्ति है। यूनानी विचारकों ने मनुष्य को एक राजनीतिक-सामाजिक प्राणी माना है। यूनान के व्यक्ति का जीवन के प्रति दृष्टिकोण लौकिक और धर्मनिरपेक्ष था।
प्लेटो द्वारा राजशास्त्र का विशद् विवेचन उसकी तीन कृतियों रिपब्लिक, स्टेट्समैन और लॉज में अधिक गहन एवं सुस्पष्ट रूप से किया गया है। प्लेटो के सभी ग्रन्थ प्रश्नोत्तर संवाद या द्वन्द्वात्मक पद्धति में लिखे गए हैं।
वह घटनाओं के आधार पर सिद्धान्तों का नियमीकरण नहीं करता, बल्कि किसी विचार विशेष का विश्लेषण एवं परीक्षण करता है और इस प्रकार के परीक्षण से प्राप्त विभिन्न विचारों की बार-बार परीक्षा करके अन्त में सत्य की प्रतिस्थापना करता है। उसकी इस अध्ययन विधि को सृजनात्मक एवं रचनात्मक पद्धति भी कहा जा सकता है। प्लेटो ने पूर्णतः न तो आगमन-विधि (विशे से सामान्य की ओर) और न ही निगमन-विधि (सामान्य से विशेष की ओर) को अपनाया और न ही अरस्तू की भाँति किसी वैज्ञानिक विधि को कोई प्रश्रय दिया। प्लेटो की रचनाओं का रूप विधान आरम्भ से लेकर अन्त तक संवादों का है।
प्लेटो ने कहीं-कहीं सोद्देश्यात्मक पद्धति का भी प्रयोग किया है। सोद्देश्यात्मक का अर्थ होता है कि प्रत्येक वस्तु का कुछ उद्देश्य होता है और वह अपने उद्देश्य के लिए सतत् प्रयत्नशील रहती है। प्लेटो की पद्धति के बारे में एक उल्लेखनीय बात यह भी है कि वह कल्पनावादी दार्शनिक था।
रिपब्लिक
रिपब्लिक प्लेटो की सर्वश्रेष्ठ कृति है, जिसमें उसने दार्शनिक शासक व न्याययुक्त आदर्श राज्य की कल्पना की है। अर्नेस्ट बार्कर ने रिपब्लिक को पाँच भागों में बाँटा है
आध्यात्मिक भाग – इसमें अच्छा-भला या नेक क्या है. इस प्रश्न पर विचार किया गया है।
नैतिक भाग – इस भाग में मानव आत्मा के गुणों पर प्रकाश डाला गया है।
शिक्षा- इस भाग में शिक्षा व्यवस्था पर चर्चा की गई है।
सम्पत्ति और परिवार – इसमें सम्पत्ति विषयक व परिवार विषयक साम्यवाद की चर्चा की गई है।
आदर्श राज्य का पतन – प्लेटो ने इस भाग में बताया है कि यदि आदर्श राज्य के नियमों का पालन न किया गया तो आदर्श राज्य का पतन हो जाएगा।
बार्कर ने रिपब्लिक के बारे में कहा है कि यह वास्तविक जीवन पर आधारित है। इमर्सन ने प्लेटो के बारे में लिखा है कि “प्लेटो दर्शन है तथा दर्शन प्लेटो है।”