Greek Political Thought : Plato (428 BC-347 AD)

लॉज़ में प्रतिपादित प्रमुख सिद्धान्त

आत्म-संयम का सिद्धान्त

रिपब्लिक में प्लेटो ने न्याय को आदर्श राज्य का आधार माना है। लॉज में वह न्याय की व्यवस्था को स्थापित करने के लिए आत्म-संयम को आवश्यक मानता है। उनका मानना है कि यदि व्यवस्थापक ऐसे कानूनों का निर्माण करें जिससे लोग आत्म-संयमी बनें तो इससे तीन आदर्शों की प्राप्ति होती है- स्वतन्त्रता, एकता और सूझ-बूझ। आत्म-संयम ही राज्य को पूर्ण और दोषहीन बना सकता है। आत्म-संयम के कार्यों से निरपेक्ष विकेन्द्रीकरण की कल्पना नहीं की जा सकती है।

कानून विषयक सिद्धान्त

प्लेटो की रिपब्लिक का आदर्श राज्य एक ऐसा शासन है जो कुछ विशेष ऐसे प्रशिक्षित व्यक्तियों द्वारा संचालित होता है जिन पर किन्हीं सामान्य नियमों का कोई अंकुश नहीं होता है, जबकि लॉज़ के राज्य में कानून की स्थिति सर्वोच्च है तथा शासक और शासित दोनों ही उसके अधीन रहते हैं। सेवाइन के अनुसार, “कानून के बिना आदमी की स्थिति बर्बर पशुओं की तरह हो जाती है, लेकिन यदि योग्य शासक हो तो कानूनों की जरूरत नहीं पड़ेगी, क्योंकि कोई भी कानून या अध्यादेश मन से बढ़कर नहीं है। इसलिए प्लेटो का अन्त तक यह विश्वास बना रहा है कि वास्तविक आदर्श राज्य में विशुद्ध विवेक का शासन चलना चाहिए। कानून द्वारा शासित राज्य, मानव, प्रकृति भी दुर्बलता के प्रति एक रियायत थी। प्लेटो उसे अपने आदर्श राज्य के समान स्वीकार करने को तैयार नहीं था। यदि दार्शनिक शासकों का निर्माण करने के लिए आवश्यक ज्ञान उपलब्ध नहीं होता, तो कानून पर आधारित शासन में विश्वास करना ठीक है।”

इतिहास की शिक्षाएँ

प्लेटो ने इतिहास का उदाहरण देते हुए बताया है कि राज्यों के आत्म-संयमी न रहने और सत्ता के एक व्यक्ति के हाथ में केन्द्रित हो जाने के आत्म ही अगर गोज एवं फैनिना जैसे राज्यों का पतन हो गया। एथेन्स के लोकतन्त्र में भी आत्म-संयम के अभाव के कारण ही उनका पतन हुआ इसलिए वह एक निश्चित शासन प्रणाली का समर्थन करता है जिससे राज्य की सत्ता और जनता की सहमति को स्वीकारा जाए।

मिश्रित राज्य

इस सिद्धान्त का उद्देश्य है कि शक्तियों के सन्तुलन द्वारा राज्य सत्ता प्राप्त करना। इस सिद्धान्त के अनुसार उप-आदर्श राज्य के निर्माण के लिए राजा और प्रजा, धनी और निर्धन, बुद्धिमान और शक्तिशाली सभी व्यक्तियों और सभी वर्गों का सहयोग आवश्यक है।

लॉज़ में वर्णित प्लेटो का उप-आदर्श राज्य राजतन्त्रात्मक, कुलीनतन्त्रात्मक और जनतन्त्रात्मक है। डिवाइन के शब्दों में लॉज़ में प्लेटो का मिश्रित राज्य राजतन्त्रात्मक शासन की बुद्धि और लोकतन्त्रात्मक शासन की स्वतन्त्रता का समन्वय है।

राज्य का भू-भाग और जनसंख्या

प्लेटो मानते हैं कि राज्य के तट को समुद्र के किनारे नहीं होना चाहिए क्योंकि इस प्रकार के राज्य में बाह्य व्यापारी नजर रखते हैं, जिससे राज्य को खतरा हमेशा बना रहता है दूसरी ओर राज्य को नौसेना भी लगानी पड़ती है, जिससे अनायास ही राज्य पर अतिरिक्त व्यय बोझ पड़ता है। साथ ही राज्य के व्यापारी भी समुद्र का लाभ लेने के विचार से समुद्री व्यापारी की तरह असीमित होते हैं जिससे राज्य की एकता एवं अखण्डता पर भी खतरा मण्डराता है। इस प्रकार प्लेटो भू-भाग का समुद्री तट के किनारे न होने और राज्य की जनता का समुद्री व्यापार न करने के पक्ष में समर्थन करते हैं उनमें सिर्फ अरस्तू समुद्री व्यापार का समर्थन करते हैं।

प्लेटो के दर्शन में पाइथागोरस का बहुत ही ज्यादा प्रभाव पड़ा है। उसने गणित को, उसके गुणनफल को इतना महत्त्व दिया है, जिसमें राज्य को – जनसंख्या 5040 बताई जिसे 1×2×3×4×5×6×7=5040 तो 7×8×9×10=5040 के गुणनफल को ध्यान में रखकर कहा कि इससे राज्य की जनसंख्या को टुकड़ों में बाँटा जा सकता है जिसमें ये युद्ध और शान्ति – में उपयोगी होंगी। प्लेटो पर इसी गणित के प्रभाव ने वर्ष में 12 महीनों में काम  करने के लिए राज्य परिषद् की 12 समितियाँ बनाई और राज्य की जनसंख्या को 12 जातियों में विभाजित किया।

राजनीतिक संस्थाएँ

प्लेटो अपने आदर्श राज्य में सम्पत्ति के साम्यवाद को बताकर कहते हैं कि “मित्रों का सब वस्तुओं पर समान अधिकार होता है। भू-सम्पत्ति, स्त्रियाँ एवं बच्चे सबके समझे जाते हैं तथा वैयक्तिक सम्पत्ति बिल्कुल न होने के कारण मेरे तेरे का भाव मिटाकर सम्पूर्ण राज्य तन-मन से एकता का अनुभव करता है।” इस कथन में सुधार करते हुए प्लेटो लॉज में वर्णित उप-आदर्श में सम्पत्ति का जिक्र करते हुए कहते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति के पास निजी सम्पत्ति होगी पर वह भूमि और मकान के रूप में होगी न कि व्यापार, वाणिज्य आदि के रूप में प्लेटो भूमि का वितरण भी समान कर देते हैं और यह भी निश्चित करते हैं कि – भूमि का उत्पादन एक जगह एकत्रित किया जाएगा, जिसका सार्वजनिक भोजन के रूप में उपयोग होगा। इस प्रकार प्लेटो ने भूमिगत सम्पत्ति का सामान्यीकरण कर दिया है।

प्लेटो ने सम्पत्ति के उपरान्त श्रम-विभाजन पर अपने विचार उप-आदर्श राज्य के लिए व्यक्त किए हैं प्लेटो ने कार्यों का वर्गीकरण तीन भागों में कुछ इस प्रकार किया है

1. विदेशियों अथवा फ्रीमेन के लिए व्यापार एवं उद्योग
2. दासों अथवा गुलामों के लिए खेती
3. नागरिकों के लिए शासन प्रबन्ध अथवा राजनीतिक कार्य

प्लेटो राज्य में सरकार के संचालन के लिए सरकार को सर्वोच्चता न देकर कानून को देता है अर्थात् सभी राजनीतिक संस्थाएँ कानून के अधीन हैं। प्लेटो ने राज्य के शासन के लिए कुछ व्यवस्थाओं पर विचार दिया है।

प्लेटो राज्य चलाने के लिए एक साधारण सभा की बात करते हैं जिसमें – सभी (5040) राज्य के सदस्य होंगे, उनका काम अन्य संस्थाओं के सदस्यों का चयन करना, सेना के अधिकारियों का चयन करना एवं कानूनों में परिवर्तन कर न्याय करना आदि होंगे। प्लेटो एक सलाहकार बोर्ड की बात करते हैं जिसके सदस्यों का निर्वाचन साधारण सभा से होगा। यह निर्वाचन तीन बार किया जाएगा अर्थात् पहले 5040 से 300 सदस्य त्रि 300 से 100 सदस्य इस प्रकार सलाहकार बोर्ड 37 सदस्यों से मिलकर बनेगा। इन सदस्यों की उम्र 50 से 70 वर्ष होगी, ये बोर्ड कानून का संरक्षण करेगा, साथ ही सलाहकार बोर्ड परामर्श की भूमिका निभाएगा।

 

यूनानी राजनीतिक विचार

सलाहकार बोर्ड द्वारा दिए गए परामर्श के अनुसार शासन चलाने के लिए एक प्रशासनिक परिषद् होगी, इस परिषद् में पहले 360 सदस्य होंगे पर जील चुनावी प्रक्रिया से निकलकर 90 सदस्य ही बचेंगे। इस परिषद् को 12 भागों में बाँटा जाएगा, जिसका प्रत्येक भाग एथेन्स की तरह एक महीने के लिए शासन करेगा एवं परिषद् की अध्यक्षता शिक्षा विभाग का अध्यक्ष करेगा जिसकी • पदावधि 5 वर्ष की होगी। प्रशासनिक परिषद् का कार्यकाल 20 वर्ष के लिए निर्धारित किया गया है।
प्लेटो के अनुसार स्थानीय शासन के संचालन के लिए नगरों के निरीक्षण के लिए दो प्रकार के अधिकारी होंगे।

1. नगर निरीक्षक
2. राज्य निरीक्षक

न्यायालय के प्रकार

न्याय प्रशासन की स्थापना करने के लिए प्लेटो ने चार प्रकार के न्यायालयों की चर्चा की है

1. स्थायी पंचायती न्यायालय
2. क्षेत्रीय न्यायालय
3. विशेष चुने हुए न्यायाधीशों का न्यायालय
4. सम्पूर्ण जनता का न्यायालय

उपरोक्त विचारों के अतिरिक्त प्लेटो ने विवाह एवं परिवार विषयक, शिक्षा और धार्मिक संस्थाएँ, शान्ति एवं युद्ध, ऐतिहासिक शिक्षा, अपराध एवं दण्ड आदि पर भी विशद् चिन्तन किया है।

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