हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने तलाक से जुड़े मामलों में महत्त्वपूर्ण व्यवस्था देते हुए कहा है जब कोई पक्ष क्रूरता और परित्याग के आरोप के साथ अदालत का दरवाजा खटखटाता है, तो उन आरोपों को साबित करने की जिम्मेदारी उसी पर होती है। न्यायाधीश अजय मोहन गोयल ने प्रार्थी पति की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि प्रार्थी ऐसे कोई भी सबूत अथवा गवाह पेश नहीं कर पाया, जिससे यह साबित होता हो कि उसकी पत्नी ने उसके साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया और उसे छोड़ कर चली गइ।
याचिका में यदि आरोप क्रूरता और परित्याग को लेकर लगाए गए हैं, तो उन्हें साबित करने का दायित्व भी आरोप लगाने वाले पर ही होता है। मामले के अनुसार याचिकाकर्ता ने क्रूरता और परित्याग के आधार पर प्रतिवादी पत्नी से तलाक की मांग करते हुए पारिवारिक न्यायालय में याचिका दायर की थी। याचिका में कहा गया था कि दोनों पक्षों के बीच विवाह 20 जनवरी, 1991 को हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार संपन्न हुआ था। इसके बाद उनके दो बच्चे हुए।
तलाक याचिका दायर करने के समय दोनों बच्चों में से एक याचिकाकर्ता के साथ और दूसरा प्रतिवादी के साथ रहने लगा। याचिकाकर्ता के अनुसार प्रतिवादी पत्नी ने शादी के चार साल बाद उसे छोड़ दिया औ उसके और उसके माता-पिता के प्रति पत्नी का व्यवहार और आचरण भी अच्छा नहीं था। आरोप था कि वह याचिकाकर्ता को उसके रिश्तेदारों और दोस्तों के सामने अपमानित करती थी।
वहीं, प्रतिवादी पत्नी के अनुसार याचिकाकर्ता द्वारा उसे परेशान किया जाता था, जो उसे पीटता था और उसका साथ छोडऩे के लिए मजबूर करता था। याचिकाकर्ता पुलिस विभाग में सेवारत था और उसने किसी अन्य महिला के साथ घनिष्ठता विकसित की थी और वे दोनों पति-पत्नी के रूप में रह रहे थे। पत्नी ने आरोप लगाया था कि उक्त महिला के साथ याचिकाकर्ता के रिश्ते को वैध बनाने के लिए तलाक की मांग करते हुए पति ने तलाक याचिका दायर की थी।
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