Hill States and their relations with the Mughals

(iii) जहाँगीर-

जहाँगीर – 1605 ई. में गद्दी पर बैठा। काँगड़ा के राजा बिधीचंद की 1605 ई. में मृत्यु हुई और उसका पुत्र त्रिलोकचंद गद्दी पर बैठा। जहाँगीर ने 1615 ई. में काँगड़ा पर कब्जा करने के लिए नूरपुर (धमेरी) के राजा सूरजमल और शेख फरीद मुर्तजा खान को भेजा परंतु दोनों में विवाद होने और मुर्तजा खान की मृत्यु होने के बाद काँगड़ा किले पर कब्जा करने की योजना को स्थगित कर दिया गया। जहाँगीर ने 1617 ई. में फिर नूरपुर के राजा सूरजमल और शाह कुली खान मोहम्मद तकी के नेतृत्व में काँगड़ा विजय के लिए सेना भेजी। राजा सूरजमल और शाह कुली खान में झगड़ा हो जाने के कारण कुली खान को वापस बुला लिया गया। राजा सूरजमल ने मुगलों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया।

 

जहाँगीर ने सूरजमल के विद्रोह को दबाने के लिए राजा राय विक्रमजीत और अब्दुल अजीज को भेजा। राजा सूरजमल ने मानकोट और तारागढ़ किले में शरण ली जो चम्बा रियासत के अधीन था। चम्बा के राजा प्रताप वर्मन ने सूरजमल को समर्पण करने का सुझाव दिया परंतु 1619 ई. में उसकी मृत्यु हो गई। काँगड़ा किला 1620 ई. में मुगलों के अधीन आ गया। जहाँगीर को 20 नवंबर, 1620 ई. को काँगड़ा किले पर कब्जे की खबर मिली। कांगड़ा किले को जीतने में राजा सूरजमल के छोटे भाई जगत सिंह ने मुगलों की मदद की।

 

काँगड़ा किले पर नवाब अलीखान के नेतृत्व में मुगलों का कब्जा हुआ और 1783 ई. तक कब्जा रहा। जहाँगीर 1622 ई. में धमेरी (नूरपुर) आया। उसने अपनी पत्नी नूरजहाँ के नाम पर धमेरी का नाम नूरपुर रखा। काँगड़ा किले के एक दरवाजे का नाम ‘जहाँगीरी दरवाजा’ रखा गया। जहाँगीर ने काँगड़ा किले के अंदर एक मस्जिद का निर्माण करवाया।

 

जहाँगीर के समय चम्बा के राजा जर्नाधन और जगत सिंह के बीच ‘धलोग का युद्ध’ हुआ जिसमें जगत सिंह विजयी हुआ। चम्बा पर 1623 ई. से लेकर 2 दशक तक जगत सिंह का कब्जा रहा। जगत सिंह मुगलों का वफादार था। सिरमौर का राजा बुद्धि प्रकाश (1605-1615) जहाँगीर का समकालीन था। काँगड़ा किले का पहला मुगल किलेदार नवाब अलीखान था।

 

(iv) शाहजहाँ-

शाहजहाँ के शासनकाल में नवाब असदुल्ला खान और कोच कुलीखान काँगड़ा किले के मुगल किलेदान बने। कोच कुलीखान 17 वर्षों तक मुगल किलेदार रहा। उसे बाण गंगा नदी के पास दफनाया गया था। सिरमौर का राजा मन्धाता प्रकाश शाहजहाँ का समकालीन था। उसने मुगलों के गढ़वाल अभियान में कई बार सहायता की।

(v) जगतसिंह- 1627 में शाहजहाँ ने जगतसिंह का मनसब पुनः पक्का कर दिया। जगत सिंह को 1634 में बगस का फौजदार नियुक्त किया गया। तीन वर्ष बाद उसे काबुल प्रांत की जिम्मेदारी मिली। जगत सिंह और उसके पुत्र राजरूप सिंह ने शाहजहाँ के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। शाहजहाँ ने अपने पुत्र मुराद बख्श को विद्रोह कुचलने के लिए भेजा। मुगलों ने मऊकोट और नूरपुर किलों पर आक्रमण कर जगतसिंह को तारागढ़ किले में शरण लेने को मजबूर कर दिया। जगतसिंह को 1642 ई. में संधि करनी पड़ी और शाहजहाँ ने उसे क्षमा कर दिया।

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