History of Balsan
बलसन रियासत की राजधानी घोड़ना थी। सिरमौर रियासत के राठौर वंशज ‘अलक सिंह’ ने 12वीं शताब्दी में इस रियासत की स्थापना की थी। अलक सिंह सिरमौरी ताल में बाढ़ आने के बाद विद्रोह के कारण सिरमौर रियासत को छोड़कर भाग गया था। बलसन रियासत 1805 ई. से पूर्व सिरमौर रियासत की जागीर थी। गोरखा आक्रमण के समय (1805 ई. में) यह रियासत कुमारसेन की जागीर थी और इस पर जोगराज सिंह का राज था।
जोगराज सिंह ने गोरखा युद्ध में ब्रिटिश सरकार की सहायता की और नागन दुर्ग डेविड ऑक्टरलोनी को सौंप दिया था। गोरखा आक्रान्ताओं का मुकाबला करने के लिए ठाकुर जोगराज ने ब्रिटिश सरकार की मदद ली थी। गोरखा युद्ध के समाप्त होने के बाद बलसन के शासक ठाकुर जोगराज सिंह को ‘स्वतंत्र सनद’ 21 सितम्बर, 1815 ई. को प्रदान की गई।
1820 ई. में बलसन के शासक ने रतेश के कुछ हिस्सों को अपने अधीन किया। बलसन रियासत ने 1857 ई. के विद्रोह में ब्रिटिश सरकार का साथ दिया और बहुत से यूरोपीय नागरिकों को अपने यहाँ शरण दी। बलसन रियासत के शासक को ब्रिटिश सरकार ने 1858 ई. में ‘खिल्लत’ और ‘राणा’ का खिताब दिया।
बलसन रियासत के राणा जोगराज को सर्वप्रथम ‘राणा’ का खिताब दिया गया। 1867 ई. में राणा जोगराज की मृत्यु हो गई तथा राणा भूपसिंह (1867 ई.- 1884 ई.) शासक बने। इसके बाद राणा बीरसिंह (1884 ई.- 1920 ई.) तथा उनके भाई कंवर अतर सिंह (1920 ई.-1936 ई.) इस रियासत के शासक बने। बलसन रियासत के अंतिम शासक राणा विद्याभूषण सिंह रहे।
बलसन रियासत का वरीयता में शिमला पहाड़ी रियासतों में 11वाँ स्थान था। बलसन रियासत के अन्तिम राणा रण भादुर सिंह थे। इन्हें ब्रिटिश सरकार ने 23 अप्रैल, 1937 को राजगद्दी पर बैठाया। ‘हिस्ट्री ऑफ बलसन स्टेट’ उन्हीं की लिखी पुस्तक है। वर्तमान में बलसन ‘ठियोग’ तहसील का हिस्सा है।