बुद्धप्रकाश (1664-78 ई.)
सोभाग प्रकाश के बड़े पुत्र महीचंद को औरंगजेब ने बुद्ध प्रकाश की उपाधि से सम्मानित कर सिरमौर का राजा स्वीकार किया। राजा बुद्ध प्रकाश की मुगल दरबार में अच्छी पहुँच थी। वह बेगम जहाँआरा को कस्तूरी, अनार, बर्फ आदि के उपहार भेजा करता था। उसका बेगम के साथ बराबर पत्र व्यवहार होता रहता था। बुद्ध प्रकाश की सेना को ‘देशु की धार’ पर क्योंथल की सेना ने पराजित किया था।
मेदनी प्रकाश (1678-1704 ई.)
मेदनी प्रकाश के शासन काल में गुरुगोविंद सिंह नाहन और पौंटा आए। पाँटा साहिब में गुरू गोविंद सिंह 1684-1688 ई. तक रहे और भगानी साहिब का युद्ध लड़ा। मेदनी प्रकाश ने नाहन में 1681 ई. में जगन्नाथ मंदिर का निर्माण करवाया। मेद्रनी प्रकाश को मत प्रकाश भी कहा जाता था।
हरिप्रकाश (1704-12 ई.)–
हरिप्रकाश के समय बन्दा बहादुर सिरमौर आया था।
भूप प्रकाश (1712 ई.)-
मुगल शाह मुहम्मद मुआजिम बिन आलमवीर ने भूप प्रकाश को खिल्लत सहित भीम प्रकाश की उपाधि से सम्मानित किया था। उसकी रानी ने ‘कालिस्तान’ में मंदिर का निर्माण करवाया था।
कीरत प्रकाश (1757-73 ई.)
कीरत प्रकाश ने श्रीनगर (गढ़वाल) के राजा को हराकर नारायणगढ़, रामपुर, रामगढ़, मोरनी, पिंजौर और जगतगढ़ पर अधिकार कर लिया था। गोरखा कमाण्डर अमर सिंह थापा और कीरत प्रकाश के बीच एक संधि हुई जिसके अनुसार गंगा नदी को गोरखा और सिरमौर राज्य के बीच सीमा माना गया।
जगत प्रकाश (1773-92 ई.)-
जार्ज फॉस्टर 1781 ई. में नाहन आया था। राजा जगत प्रकाश ने 1785 ई. में रोहिल्ला खण्ड के गुलाम कादिर रोहिल्ला को कटासन में हराया और विजय स्मृति में वहाँ कटासन देवी (दुर्गा मंदिर) का मंदिर बनवाया।
• धर्म प्रकाश (1792-96 ई.) –
धर्म प्रकाश हिण्डूर के राजा रामशरण सिंह, कहलूर के राजा महान चंद और काँगड़ा के राजा संसार चंद का समकालीन था। संसार चंद की सेना के विरुद्ध लड़ते हुए धर्म प्रकाश की मृत्यु हो गई थी। धर्म प्रकाश की मृत्यु के बाद उसका भाई कर्म प्रकाश-II गद्दी पर बैठा।
• कर्म प्रकाश-II (1796 ई.-1815 ई.)
कर्म प्रकाश के शासनकाल में मेहता प्रेम सिंह वजीर की मृत्यु के बाद रियासत में घरेलू विद्रोह होने लगे। कर्म प्रकाश परिवार के साथ 1803 ई. में क्यारदा दून के ‘काँगड़ा किले’ में रहने लगे। उन्होंने विद्रोह को दबाने के लिए गोरखों को आमंत्रित किया। रंजौर सिंह (अमर सिंह थापा का पुत्र) ने सिरमौर रियासत को अपने अधीन कर लिया। रंजौर सिंह ने ‘जातक दुर्ग’ का निर्माण करवाया। कर्म प्रकाश अपनी मृत्यु तक अम्बाला के भूरियाँ में शरण लेकर रहा।