हिमाचल में 1857 के विद्रोह का अंत
14 अगस्त, 1857 ई. तक शिमला, काँगड़ा, कुल्लू, नालागढ़ और अन्य पहाड़ी रियासतों में क्रांति के शोले धीमे पड़ चुके थे। इस क्रांति में 50 हिमाचली क्रांतिकारियों को फाँसी, 500 को जेलों में बंद तथा 30 को देश निकाला दिया गया था तथा उनकी सम्पत्तियाँ जब्त कर ली गई।
1857 ई. की क्रांति के कारण-
• जनसाधारण में असंतोष – अँग्रेज अधिकारियों द्वारा जनसाधारण के धार्मिक जीवन और सामाजिक रीतिरिवाजों में अनावश्यक हस्तक्षेप और पक्षपातपूर्ण नीतियों से लोगों में रोष फैल गया था।
• पहाड़ी राजाओं में असंतोष- शिमला पहाड़ी रियासतों में अनावश्यक हस्तक्षेप तथा काँगड़ा की पहाड़ी रियासतों के अनेक राजवंशों की समाप्ति से पहाड़ी राजाओं में असंतोष था।
• देशी सैनिकों से पक्षपातपूर्ण व्यवहार – कोई भी भारतीय सैनिक स्टॉफ अफसर नहीं बन सकता था। सरकार सैनिकों के सामाजिक और धार्मिक जीवन में हस्तक्षेप करती थी। सेना का सबसे बड़ा भारतीय अफसर ब्रिटिश सेना के सबसे छोटे अँग्रेज अफसर के अधीन होता था। उन्हें भारत के बाहर भी लड़ने भेजा जाता था।
• लार्ड डल्हौजी की लैप्स (व्ययगत) की नीति भी 1857 ई. की क्रांति का कारण भी।
• चर्बी वाले कारतूस- नई राइफल जिसे एन्फील्ड राइफल कहते थे उसमें गाय और सुअर की चर्बी वाले कारतूस प्रयोग में लाए जाते थे जिसे प्रयोग करने से हिन्दू और मुस्लिम सैनिकों ने इंकार कर दिया। यह राइफल 1857 ई. की क्रांति का तात्कालिक कारण थी।
1857 के विद्रोह का अंत
1857 का विद्रोह : पहाड़ी रियासतों का सहयोग
Revolt of 1857 : Ramprasad Bairagi (रामप्रसाद बैरागी) की भूमिका