• हरियाली-
श्रावण मास के पहले दिन, वर्षा ऋतु का त्योहार हरियाली मनाया जाता है। इसे लाहौल में शैगतरेम जुब्बल एवं किन्नौर में दशनैन, काँगड़ा में हरियाली और ऊपरी शिमला में रहयाली कहा जाता है। लाहौल में इस दिन सत्तू और घी के टोटू बनाकर उन्हें गेफान (गुरु घण्टाल) को अर्पित किया जाता है। किसान लोग इस दिन पशुओं से जुएँ, कीड़े और चीचड़ निकालकर उसे गोबर के उपलों में दबाकर गाँव के बाहर सूखी झाड़ियों में रखकर जला देते हैं।
• बूढ़ी दीवाली –
पहाड़ों में दीवाली के एक माह पश्चात् मगहर की अमावस्या को बूढ़ी दीवाली का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन बलराज को जलाया जाता है। लोग शाम को आग के पास इकट्ठा हो रामायण और महाभारत गाते हुए नाचते हैं। इसी समय देवताओं और राक्षसों के मध्य युद्ध का अभिनय किया जाता है जिसमें देवताओं को विजयी दिखाया जाता है।
• माघी (लोहड़ी) –
“पौष” माह के अंत में ‘लोहड़ी’ मनाई जाती है। निचले हिमाचल में लोहड़ी और ऊपरी हिमाचल में यह उत्सव ‘माघी’ या ‘साजा’ कहलाता है। माघी का त्योहार माघ माह की प्रथम तारीख को मनाया जाता है। इस दिन लोग घरों पर रामायण, महाभारत और भरथरी गाने वालों को बुलाते हैं। लोहड़ी से पूर्व एक माह तक ग्रामीण कृषक एवं श्रमिक बालाएँ घर-घर जाकर लोहड़ी के गीत ‘लुहकड़ियाँ’ गाती हैं। इस दिन मीठे तथा नमकीन ‘बबरू’ पकाए जाते हैं।
• खोजाला –
लाहौल में जनवरी (माघ की पूर्णमासी) में दीपावली का त्योहार मनाते हैं, जिसे ‘खोजाला’ कहा जाता है। ऊँचे स्थल पर प्रत्येक व्यक्ति ‘गेफान’ और ‘ब्रजेश्वरी देवी’ के नाम पर देवदार की पत्तियाँ आग में डालता है। कुछ क्षेत्रों ‘ध्याली’ का त्योहार दीवाली से दो माह बाद मनाया जाता है। इस दिन ‘बबरू’ पकवान बनते हैं।