प्लेटो के फासीवादी विचार Plato’s fascist ideas

प्लेटो के फासीवादी विचार

प्लेटो अपनी पुस्तक ‘रिपब्लिक’ में आदर्श राज्य की परिकल्पना करते हुए फासीवाद के समान दार्शनिक शासक को असीमित शक्तियाँ प्रदान करता है। प्लेटो व्यक्ति की तुलना में राज्य पर बल देते हुए सावयवी सिद्धान्त का समर्थन करता है। प्लेटो राज्य द्वारा नियन्त्रित शिक्षा का समर्थन करता है और लोकतन्त्र की भर्त्सना करता है।

 

फाँसीवाद और प्लेटो के विचारों में समानताएँ

• दोनों में राज्य की सर्वोच्चता को महत्त्व दिया गया है, और व्यक्ति की स्वतन्त्रता को कोई स्थान नहीं दिया है।

• राज्य के हितों के लिए व्यक्ति के हितों की आहुति देने को उचित ठहराया गया है। प्लेटो ने दार्शनिक राजा के निरंकुश नेतृत्व को स्वीकार किया है। फासीवाद भी एक नेता, एक दल की निरंकुशता स्थापित करता है।

• प्लेटोवाद और फासीवाद दोनों का कुलीनतन्त्र में विश्वास है।

• दोनों विचारधाराएँ मनुष्य के कर्त्तव्यों का उल्लेख करती हैं, अधिकारों का नहीं।

• शिक्षा के बारे में दोनों के समान विचार हैं। दोनों राज्य द्वारा संचालित योजना प्रस्तुत करते हैं। दोनों शिक्षण का विशेष पाठ्यक्रम देते हैं। दोनों का उद्देश्य नेतृत्व की शिक्षा देना है।

 

• दोनों विचारधाराओं के युग में राज्य का सवर्वोत्तम स्थान था, यद्यपि राज्यों का स्वरूप भिन्न-भिन्न अवश्य था। प्लेटो के समय नगर राज्य थे, जबकि बीसवीं सदी में इटली राष्ट्र राज्य था।

फासीवाद के अनुरूप प्लेटोवाद में पाई जाने वाली इन सतही समानताओं के आधार पर कार्ल पॉपर जैसे विचारक प्लेटो को फासीवादी कहते हैं। परन्तु प्लेटो का सूक्ष्म और गहन अध्ययन किया जाए तो स्पष्ट हो जाता है कि फासीवाद और प्लेटोवाद में आधारभूत अन्तर है।

 

प्लेटोवाद और फासीवाद में आधारभूत अन्तर

• प्लेटोवाद और फासीवाद में आधारभूत अन्तर निम्नलिखित हैं
• प्लेटोवाद नैतिकवाद पर आधारित है तो फासीवाद नैतिकता विरोधी है।
• प्लेटोवाद आदर्शवाद है तो फासीवाद यथार्थवाद है।
• प्लेटोवाद संयम पर आधारित है तो फासीवाद दमन पर आधारित है।
• प्लेटोवाद साम्यवादी है तो फासीवाद साम्यवाद विरोधी है।

 

• प्लेटोवाद शान्ति पर आधारित है तो फासीवाद हिंसा पर आधारित है।
• प्लेटोवाद आत्मनिर्भर नगर राज्य का समर्थन करता है तो फासीवाद साम्राज्यवाद का समर्थन करता है।
प्लेटोवाद का मूल उ‌द्देश्य न्याय की स्थापना करना है, जबकि फासीवाद का उद्देश्य स्वार्थ-हितों की पूर्ति करना है।

Author: Ram Bhardwaj