हिमाचल प्रदेश का प्राचीन इतिहास
प्रागैतिहासिक एवं वैदिक काल
प्रागैतिहासिक (Pre-historic) हिमाचल- प्रागैतिहासिक काल में लिपि का विकास नहीं हुआ था। इस समय के मानव के कोई लिखित स्त्रोत हमें नहीं मिले हैं। हम केवल पुरातात्विक स्त्रोतों पर ही इस अवधि के लिए निर्भर थे। इस अवधि को पुरापाषाण काल (30 लाख से 10 हजार BC), मध्यपाषाण काल (1000BC-4000BC) और नवपाषाण काल (7000BC-1000BC) में बांटा गया है- आद्य ऐतिहासिक काल (Proto-historic) उस कालखण्ड को कहते हैं, जिसमें लिपि तो थी, किंतु अभी तक पढ़ी नहीं जा सकी है, जैसे-हड़प्पा काल।
(1) पुरापाषाणकालीन स्रोत-
1951 में सतलुज की सहायक नदी सिरसा के दायीं ओर नालागढ़ में ओलाफ प्रुफर को पत्थरों से बने औजार जैसे खुरपे आदि प्राप्त हुए हैं। 1955 में बी.बी. लाल ने गुलेर, देहरा, ढलियारा तथा काँगड़ा से आदिसोहन प्रकार के 72 पत्थरों के उपकरणों के नमूने प्राप्त किए हैं। इनमें चापर, हस्त कुठारें और वेदनी प्रमुख है। डॉ. जी.सी. महापात्रा ने भी सिरसा नदी घाटी और काँगड़ा में उत्तर पाषाण काल (30 लाख 4 लाख वर्ष पूर्व) के पत्थर के बने औजारों के अवशेष प्राप्त किए हैं। सिरमौर की मार्कंडा नदी के सुकेती क्षेत्र में 1974 में इस अवधि के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
(2) मध्यपाषाण एवं नवपाषाणकालीन स्रोत-
भारत में इस अवधि (10000BC-1000BC) को एक माना गया है, जबकि यूरोप में इसका विभाजन किया गया है। स्थायी कृषि और सभ्यताओं का उद्गम इस अवधि के दौरान हुआ। रोपड़ में कोटला निहंग में नवपाषाण युग के प्रमाण मिले हैं।
सरस्वती-यमुना नदियों की तलहटी में भूरे रंग के चित्र मिट्टी के बर्तनों में बने मिले हैं।