Sources of History of Himachal Pradesh

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(4) प्राचीन देवता-

शिव– हिमाचल के आदि निवासियों द्वारा ऐसे देव की उपासना के प्रमाण मिलते हैं, जो शिवजी से मिलते-जुलते हैं। इसका उदाहरण मणिमहेश, किन्नर कैलाश, महासू देवता का मंदिर है। हिमाचल का प्राचीनतम धर्म शैव धर्म है। पशुपति देवता की पूजा के प्रमाण सिंधु घाटी सभ्यता में मिले हैं।

शक्ति– हि.प्र. में शिव उपासना के साथ-साथ शक्ति पूजा भी होती थी। यह पौराणिक काल में दुर्गा, काली, अम्बा और पार्वती आदि नामों से प्रसिद्ध हुई। छतराणी में शक्ति देवी, भरमौर में लक्षणा देवी, ब्रजेश्वरी देवी मंदिर, ज्वालामुखी, हिडिम्बा देवी कुल्लू, नैनादेवी बिलासपुर, हाटेश्वरी देवी हाटकोटी और भीमाकाली सराहन हि.प्र. में शक्ति उपासना के प्राचीन प्रमाण हैं।

नाग देवता– नाग देवता के अनेक मंदिरों एवं पूजा स्थलों के प्राचीन प्रमाण हि.प्र. में प्राप्त हुए हैं।

(5) आर्य और हिमाचल- आयों की एक शाखा ने मध्य एशिया से होते हुए भारत में प्रवेश किया। ये वैदिक आर्य कहलाए। ये लोग अपना पशुधन, देवता और गृहस्थी का सामान लेकर आए और सप्त सिंधु प्रदेश की ओर बढ़े। जहाँ पूरी तरह बसने में इन्हें 400 वर्ष का समय लगा। सप्त सिंधु (पंजाब) से शिवालिक की ओर बढ़ने पर वैदिक आर्यों का सामना यहाँ के प्राचीन निवासियों कोल, किरात और नाग जाति के लोगों से हुआ।

शाम्बर-  विवोदास युद्ध- दस्यु राजा “शाम्बर” के पास यमुना से व्यास नदी के बीच की पहाड़ियों में 99 किले थे। ऋग्वेद के अनुसार दस्यु राजा शाम्बर और आर्य राजा दिवोदास के बीच 40 वर्षों तक युद्ध हुआ। अंत में दिवोदास ने उदब्रज नामक स्थान पर शाम्बर का वध कर दिया। आर्यों ने कोल, किरातों और नागों को निचली घाटियों से खदेड़ कर दुर्गम पहाड़ियों की ओर जाने पर बाध्य कर दिया। ऋषि भारद्वाज आर्य राजा दिवोदास के मुख्य सलाहकार थे।

खश और आर्य- खशों को भी आर्यों ने दुर्गम पहाड़ियों की ओर भगा दिया जो वहीं बस गए, उन खशों को आर्यों ने अपने में विलीन कर लिया या दास बना लिया।

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