• खस-
आर्यों की तीसरी शाखा जो मध्य एशिया से कश्मीर होते हुए पूरे हिमालय में फैल गयी, खश जाति कहलायी। रोहण क्षेत्र के खशधार, खशकण्डी नाम के गाँव में इनके निवास का पता चलता है। खशों का नाग जाति पर विजय के रूप में भुण्डा उत्सव मनाया जाता है, जिसमें ‘बेडा जाति’ के लोग जो नाग जाति के वंशज समझे जाते हैं, के एक परिवार के व्यक्ति की बलि इस उत्सव में दी जाती है। खशों द्वारा निरमण्ड में मनाई जाने वाली ‘बूढ़ी दिवाली’ भी इनकी यहाँ के आदिम जातियों पर विजय का प्रतीक है। इसमें खश-नाग युद्ध का मंचन होता है।
खश जाति ने निकले हुए कनैत (कुलिंद) लोग खशिया नाम से प्रसिद्ध हैं। महाभारत में इस जाति का बार-बार उल्लेख आता है। यह लोग कौरवों की ओर से महाभारत का युद्ध भी लड़े थे। वायु पुराण और विष्णु पुराण में भी खशों का वर्णन आया है। इन्हीं खश लोगों के सरदारों ने बाद में छोटे-छोटे राज्य संघ बनाए जिन्हें ‘मबाणा’ कह गया। खशों ने भी प्राचीन जातियों की भाँति बहुपति प्रथा को अपना लिया। पाण्डवों ने भी वनवास के दौरान बहुपति प्रथा खशों से ली थी।