हिमाचल प्रदेश में बहुपति प्रथा विद्यमान है। यहाँ भ्रातृक बहुपति प्रथा ऊपरी हिमाचल में प्रचलित है जहाँ लड़की का विवाह बड़े भाई से होता है और वह सब भाईयों की पत्नी बन जाती है। यह प्रथा पांडवों की विरासत है। इसके अलावा रीत विवाह भी प्रचलित है। रीत विवाह में एक महिला अपने पहले पति को छोड़कर किसी दूसरे व्यक्ति से विवाह करना चाहें तो उसका पहला पति होने वाले पति से रीत धन लेकर विवाह होने की स्वीकृति देता है। इस विवाह का वर्णन पूर्व अध्याय में किया जा चुका है।
Types of Marriages in Himachal Pradesh
• झांजराड़ा / गददर या पैरना विवाह-
यह विवाह मुख्यतः निम्न जातियों में प्रचलित है। इसमें दुल्हा-दुल्हन अग्नि के सात फेरे नहीं लेते। इस विवाह में शादी तो लड़का-लड़की के माता-पिता करते हैं, परंतु शादी की तिथि को लड़का दूल्हा बनकर लड़की के घर नहीं जाता। लड़के के पिता/ भाई अपने रिश्तेदारों और गाँव वालों को लेकर जिनकी संख्या 5.7 या 11 तक होती है, गहने कपड़े लेकर लड़की के घर जाते हैं। पुरोहित मंत्र उच्चारण के साथ लड़की को मुहूर्त के समय नथ या बालू पहनाता है तथा गहने कपड़े लड़की को दिए जाते हैं।
उसी दिन या अगले दिन लड़के वाले लड़की को लेकर घर आ जाते हैं। लड़की का स्वागत वर पक्ष की स्त्रियाँ करती हैं। लड़की के सगे-संबंधी भी साथ में आते हैं। घर के दरवाजे के सामने गेहूँ या चावल की एक टोकरी, पानी से भरा घड़ा, एक दिया रखा जाता है। गणेशजी की पूजा की जाती है। सिरमौर एवं काँगड़ा आदि के ‘कण्दओं’ की भाँति दीवार पर आकृतियाँ बनाई जाती हैं। गद्दर और पैरना विवाह भी इसी प्रकार से होता है, परंतु उसमें गणेश जी की पूजा नहीं की जाती।
• घरासनी विवाह
वर वधू को एक साथ बैठाकर गुड़ दिया जाता है, जो एक-दूसरे को देते हैं एवं खाते हैं जिसके बाद विवाह सम्पन्न माना जाता है। इस रस्म को घरासनी कहते हैं।
• मुडापुली विवाह
विवाह के 3 दिन बाद नव-दम्पत्ति के पास दुल्हन के माता-पिता कुछ पकवान लेकर आते हैं। इस रिवाज को ‘मुडापुली’ कहते हैं।
• धनोज विवाह
विवाह के बाद तीसरे दिन लड़का लड़की के माँ बाप के घर जाते हैं। इस रस्म को ‘धनोज’ कहते हैं।
कुल्लू में इस तरह के विवाह को ‘पुनीमनाल’ कहा जाता है।
• जराड़फुकी / बराड़फुख या झिण्डी फुक विवाह
यह भागकर की गई शादी है इसलिए इसे अच्छा नहीं समझा जाता। निम्न क्षेत्रों में बराड़फुक, काँगड़ा में जराड़फुक और चम्बा में इसे झिण्डीफुक विवाह कहते हैं। लड़की माँ-बाप की इच्छा के विरुद्ध लड़के से संबंध स्थपित कर उसके नाम की नथ पहन लेती है। लड़का-लड़की किसी ‘बराड़ या झाड़ी’ को आग लगाकर उसके चारों ओर सात फेरे लेते हैं और इस प्रकार विवाह संपन्न हो जाता है। ऐसी शादी में पंडित जी की उपस्थिति अनिवार्य नहीं है। यह प्रथा चम्बा के गद्दियों में प्रचलित है।
• जानेरटंग विवाह
किन्नौर में झांजराड़ा/पैरना विवाह को जानेरटंग विवाह की संज्ञा दी जाती है। इसे जनेकांग या जनतुंग भी कहा जाता है। शादी का रिश्ता जोड़ने वाला मध्यस्थ जिसे निम्न क्षेत्रों में रिवारा और किन्नौर में ‘मजोमिग’ कहते हैं छांग (देशी शराब) लेकर लड़की के घर जाता है। मजोमिग आमतौर पर लड़के का मामा या चाचा होता है। यदि लड़की वालों को लड़का योग्य नहीं लगता तो वह बात को टालने के लिए बहाना बनाते हैं और मजोमिग छांग पिलाए बिना वापिस लौट आता है।
यदि विवाह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया जाता है तो मजोमिग ‘पाँच रुपये, छांग की बोतल एवं उसकी ढलान पर लगा मक्खन लड़की के पिता के सामने रख देता है। एक-दूसरे के माथे पर मक्खन का टीका लगाना ‘थाचे तमेल‘ बोला जाता है. जिसका अर्थ है ‘भगवान इस अवसर पर आशीर्वाद दें। बोतल से छांग को खुशी-खुशी पिया जाता है। यह प्रथा ‘कौरयांग’ कहलाती है। लड़के का मामा इसके बाद दो-तीन बार फिर छांग लेकर लड़की के घर जाता है। अंतिम बार वह लड़की वालों को लामा द्वारा निश्चित की गई शादी की तिथि बताता है।
शादी की तिथि के दिन दूल्हे का पिता पन्द्रह लोगों की बारात के साथ लड़की के घर जाता है। दूल्हा प्रायः साथ नहीं जाता परन्तु कहीं-कहीं दूल्हा भी साथ जाता है। बारात के आगे-आगे गाँव के बजन्तरी बैंड-बाजे के साथ चलते हैं। बारात के लड़की के घर में प्रवेश करने से पूर्व लामा थाली में तेल से भरे तीन दीए और जौ के आटे के गोले के साथ मंत्र पढ़कर बुरी आत्माओं को दूर भगाता है। उसके बाद बारात घर में प्रवेश करती है। सभी को छांग परोसी जाती है।
गीतों के रूप में प्रश्नोत्तरों का सिलसिला चलता है। प्रत्येक बाराती की टोपी में लगाने के लिए गेंदे का फूल दिया जाता है। दूसरे दिन बारात वापिस आ जाती है। गाँव के बजन्तरी सबसे आगे होते हैं। उसके पीछे लामा, फिर दुल्हन, उसका पिता और संबंधी और आखिर में दूल्हे के बाराती व दूल्हा होता है। बारात गाँव में पहुँच कर मंदिर में ठहरती है। ग्राम देवता की पूजा व बकरे की बलि दी जाती है। शराब भेंट की जाती है। अंततः सामूहिक भोज के पश्चात् दुल्हन सूखी खुबानी और न्यौजों का हार बारातियों के गले में डालकर उनसे विदा लेती है। विवाह के पश्चात् जब नववधू पहली बार अपने माता-पिता के यहाँ जाती है तो इसे ‘मैतनगास्मा’ कहते हैं।
• हार विवाह
जब एक लड़का किसी लड़की को भगा ले जाता है तो इस विवाह प्रथा को हार कहते हैं। यह घटना मेले या आस-पड़ोस की शादी के दौरान घटती है। भागने या भगाए जाने की घटना के बाद लड़की के माता-पिता एवं गाँव के बुजुर्ग लड़के के माता-पिता को जुर्माना लगाते हैं। लड़की का पिता लड़के वालों के इस अपमानजनक व्यवहार को क्षमा करने के बदले पैसे माँगता है जिसे ‘इज्जत’ कहा जाता है। यह राशि 500 रुपये तक होती है जिसे वहीं पर चुका दिया जाता है।
किन्नौर में ‘हार’ प्रथा को ‘डुबडुब‘ या ‘खुचीस‘ अथवा ‘खुटा किमा‘ कहा जाता है। एक माह बाद जब लड़का लड़की को लेकर उसके मायके जाता है तो अपने साथ तीन चार टोकरी सूखे मेवे (खुबानी और न्योजे) की माला जिसे ‘रमयूलांग’ कहते हैं, ले जाता है। इस समारोह को ‘स्टेन-रानिक’ कहते हैं। लड़की का पिता या भाई कुछ दिनों बाद लड़की को उसके ससुराल उपहार सहित छोड़ते हैं। इस प्रकार ‘डुबडुब‘ पूर्ण होता है।
हिमाचल प्रदेश मे मंदिर वास्तुकला के प्रकार (Temples in hp)