उत्तराखंड वन विभाग ने हल्द्वानी में दो उद्यान स्थापित किए हैं, जिनमें प्राचीन भारतीय महाकाव्यों में संदर्भित पौधों की प्रजातियों को प्रदर्शित किया गया है। रामायण वाटिका और महाभारत वाटिका नामक इन उद्यानों का उद्देश्य इन ग्रंथों में निहित पारिस्थितिक ज्ञान को उजागर करना है।
महाभारत वाटिका अवलोकन
महाभारत वाटिका एक एकड़ में फैली हुई है और इसमें महाकाव्य में वर्णित 37 पौधों की प्रजातियाँ हैं। मुख्य वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी ने इन प्रजातियों के चयन के पीछे के शोध पर जोर दिया।
उद्यान में महत्वपूर्ण पौधों की प्रजातियाँ हैं जैसे:
खैर (अकेसिया कैटेचू)
कोविदर (बौहिनिया वेरिएगाटा)
बरगद (फ़िकस बेंघालेंसिस)
पीपल (फ़िकस रिलिजियोसा)
ढाक (ब्यूटिया मोनोस्पर्मा)
हरसिंगार (निक्टेंथेस आर्बर-ट्रिस्टिस)
बहेड़ा (टर्मिनलिया बेलिरिका)
आम (मैंगिफ़ेरा इंडिका)
काला सिरस (एल्बिज़िया लेबेक)
पारिस्थितिक महत्व / Ecological Significance
यह उद्यान महाभारत में वर्णित वनों के महत्व पर जोर देता है। यह वन पर्व का संदर्भ देता है, जिसमें वृक्षारोपण और वन्यजीव संरक्षण पर चर्चा की गई है। यह महाकाव्य बाघों और वनों की परस्पर निर्भरता पर प्रकाश डालता है, जो समकालीन संरक्षण प्रयासों के लिए एक महत्वपूर्ण अवधारणा है।
सांस्कृतिक संबंध / Cultural Connections
चतुर्वेदी ने प्रकाश डाला कि महाभारत वृक्षारोपण के आध्यात्मिक महत्व को सिखाता है। उन्होंने वृक्षारोपण की विरासत, पूर्वजों और वंशजों को जोड़ने के बारे में युधिष्ठिर को भीष्म द्वारा दी गई सलाह का उल्लेख किया। यह ज्ञान पर्यावरण संरक्षण के सांस्कृतिक महत्व को पुष्ट करता है।
रामायण वाटिका अवलोकन Ramayana Vatika Overview
रामायण वाटिका में भगवान राम से जुड़ी लगभग 70 प्रजातियाँ हैं, जो वाल्मीकि की रामायण में वर्णित लगभग 139 प्रजातियों से ली गई हैं। यह उद्यान भगवान राम की यात्रा के साथ पौधों के जुड़ाव पर प्रकाश डालता है, जिसमें चित्रकूट (उष्णकटिबंधीय पर्णपाती), दंडकर्ण्य (उष्णकटिबंधीय), पंचवटी (उष्णकटिबंधीय शुष्क) और किष्किंधा (नम पर्णपाती) जैसे विभिन्न वनों के साथ-साथ अशोक वाटिका और द्रोणागिरी (सीता और हनुमान से जुड़े) से जुड़ी प्रजातियां शामिल हैं।
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